फर्रुखाबाद (अमृतपुर)। सरकार द्वारा गांव-गांव तक शुद्ध पेयजल पहुंचाने के लिए चलाई जा रही योजनाएं कागजों पर तो चमकदार नजर आती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। अमृतपुर क्षेत्र के रतनपुर पमारान में बनी लाखों रुपये की लागत वाली पानी की टंकी इसका ताजा उदाहरण है। वर्षों पहले बनाई गई यह टंकी आज तक लोगों की प्यास नहीं बुझा सकी। नलों से पानी आना तो दूर, टंकी के आसपास लगे पाइप भी अब कई जगह टूट चुके हैं।
सड़कें तोड़ीं, घर-घर लगे कनेक्शनपानी नहीं
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इस योजना के अंतर्गत गांव की सीमेंटेड सड़कों को बीच से काटकर पाइपलाइन डाली गई। सैकड़ों ग्रामीणों से आधार कार्ड लेकर उनका विवरण नोट किया गया। कई घरों में पानी की टंकियां और नल कनेक्शन भी लगाए गए। गांव में उस समय लोगों को उम्मीद जगी थी कि अब उन्हें हैंडपंप या दूर-दराज से पानी लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन यह उम्मीद जल्द ही निराशा में बदल गई।
सिर्फ टंकी खड़ी है, सप्लाई 3-4 महीने से ठप तक
स्थानीय लोगों का कहना है कि टंकी पर पाइपलाइन जुड़ी हुई है, मोटरें भी लगाई गई थीं, लेकिन न तो जलस्रोत से पानी भरा गया और न ही आज तक एक बार भी आपूर्ति चालू हुई। लोग हर साल गर्मी में उम्मीद करते हैं कि शायद इस बार टंकी से पानी मिलेगा, लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं।
बड़ा घोटाला, लेकिन जांच तक नहीं
ग्रामीणों का आरोप है कि यह पूरा मामला सुनियोजित भ्रष्टाचार का हिस्सा है। निर्माण कार्य से लेकर पाइपलाइन बिछाने तक सबकुछ ‘कागजी काम’ बनकर रह गया। टंकी पर ताला लटक रहा है, मोटरें कब चोरी हो गईं, किसी को खबर तक नहीं। बावजूद इसके उच्चाधिकारी चुप हैं। न तो अब तक कोई जांच बैठाई गई और न ही जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई की गई।
जनप्रतिनिधि भी गायब, प्रशासन मौन
स्थानीय जनप्रतिनिधि भी इस मुद्दे पर पूरी तरह से खामोश हैं। ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव के समय सभी नेता और अधिकारी बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन चुनाव जीतते ही गायब हो जाते हैं। टंकी के नाम पर किया गया यह मज़ाक अब ग्रामीणों की नाराज़गी में बदल रहा है।
अब सवाल यह है:
आखिर किस एजेंसी को यह कार्य सौंपा गया था?
किस अधिकारी की निगरानी में यह योजना पूरी हुई?
अगर टंकी चालू नहीं हुई तो अब तक इसमें खर्च राशि का ऑडिट क्यों नहीं हुआ?
जरूरत है स्वतंत्र जांच की
अब यह जरूरी हो गया है कि इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों को चिह्नित कर उन पर सख्त कार्रवाई की जाए। ताकि जनता का भरोसा व्यवस्था पर बना रह सके और भविष्य में ऐसी योजनाएं सिर्फ कागजों की शोभा न बनें।