फर्रुखाबाद: जिले में पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा करने वाला मामला सामने आया है, जहां एक सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के केस में पुलिस की भूमिका संदिग्ध बनी हुई है। हालात इतने भयभीत हैं कि पीड़िता और उसके परिजन तीन महीने से न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, लेकिन पुलिस कार्रवाई करने के बजाय आरोपियों को बचाने में जुटी रही। जब एसपी कार्यालय तक न्याय की गुहार बेअसर रही, तो आखिरकार न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा।
अब, एसपी आलोक प्रियदर्शी और दो एसएचओ के खिलाफ किशोर न्याय बोर्ड 24 मार्च को सुनवाई करेगा। यह सुनवाई विशेष न्यायाधीश राकेश कुमार सिंह के आदेश पर धारा 229 बीएनएस के तहत होगी।
*क्या न्याय केवल रसूखदारों के लिए है?*
पीड़िता की मां का आरोप है कि जब उन्होंने न्याय की मांग की तो पुलिस ने झूठी रिपोर्ट लगाकर आरोपियों को जमानत दिलवा दी। जब उन्होंने इसका विरोध किया, तो पुलिस ने खुद दबाव बनाना शुरू कर दिया।
*पति की हत्या पर एफआईआर तक नहीं दर्ज हुई।*
थाने से लेकर एसपी ऑफिस तक चक्कर लगाने के बावजूद कोई सुनवाई नहीं हुई।
*जब अदालत ने संज्ञान लिया, तब जाकर पुलिस की पोल खुली।*
इतना ही नहीं, सीओ सिटी ऐश्वर्या उपाध्याय पर आरोप है कि उन्होंने पीड़िता की मां को पहले कार्यालय बुलाया, फिर जब उन्होंने जाने से इनकार किया, तो पुलिस बल के साथ घर पर दबाव बनाया। उनसे झूठा बयान देने के लिए कहा गया कि उनके पति की हत्या के आरोपी निर्दोष हैं, और जब उन्होंने इससे इनकार किया तो धमकियां दी गईं।
*क्या पुलिस की वर्दी अपराधियों का सुरक्षा कवच बन गई है?*
पीड़िता के अधिवक्ता सुरेंद्र शुक्ला का कहना है कि जब उन्होंने मुकदमे की पैरवी की, तो पुलिस ने उन्हें धमकी दी कि यदि वह ज्यादा सक्रिय हुए तो उन पर इतने झूठे मुकदमे लाद दिए जाएंगे कि वह पूरी जिंदगी जेल में ही सड़ते रहेंगे। सवाल यह उठता है कि अगर एक वकील को न्याय की लड़ाई लड़ने में डराया जा सकता है, तो आम जनता का क्या होगा?
*क्या अब न्याय की उम्मीद सिर्फ अदालतों से ही रह गई है?*
जब पुलिस ही अपराधियों के साथ खड़ी नजर आए, तो पीड़ितों को न्याय की आस केवल अदालत से ही रह जाती है। इसीलिए विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो एक्ट) राकेश कुमार सिंह ने मुख्यमंत्री और संबंधित सचिव को पत्र भेजकर पीड़िता और उसकी मां की सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।
अब यह देखना होगा कि 24 मार्च को किशोर न्याय बोर्ड क्या निर्णय लेता है। क्या एसपी और आरोपी एसएचओ पर सख्त कार्रवाई होगी, या फिर यह मामला भी सिस्टम की फाइलों में गुम हो जाएगा?
*अब सवाल यह है:*
*क्या फर्रुखाबाद पुलिस अपराधियों की ढाल बन चुकी है?*
*जब पुलिस ही न्याय के रास्ते में खड़ी हो, तो आम नागरिक कहां जाए?*
*क्या इस मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई होगी, या फिर हमेशा की तरह पुलिस अपने ही लोगों को बचा लेगी?*
*आखिर कब तक गरीबों को न्याय के लिए कोर्ट-कचहरी के धक्के खाने पड़ेंगे?*
*न्यायपालिका पर भरोसा अब भी बना हुआ है, लेकिन सवाल यही है कि क्या आम नागरिक को न्याय के लिए पहले पुलिस की चौखट और फिर कोर्ट की दहलीज पर माथा टेकना जरूरी है?*
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