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अयोध्या डीएम से नाराज मुख्यमंत्री 9 महीने में ही किया तबादला

लखनऊ।उत्तर प्रदेश में मंगलवार रात आईएएस तबादला एक्सप्रेस चली।तबादला एक्सप्रेस पर 16 आईएएस अधिकारी सवार हुए।इनमें छह जिलाधिकारी भी हैं।अयोध्या के डीएम चंद्र विजय सिंह की जगह आईएएस निखिल टीकाराम फुंडे को अयोध्या का नया डीएम बनाया गया है।चंद्र विजय सिंह लगभग एक साल से अयोध्या के डीएम थे। अयोध्या इस समय योगी सरकार की प्राथमिकता में है।राम मंदिर के निर्माण के साथ-साथ विकास कार्य चल रहे हैं।ऐसे में इतनी जल्दी डीएम को हटाना कई सवाल खड़े करता है। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नाराजगी की से डीएम चंद्र विजय सिंह को हटाए गए हैं।

बता दें कि 7 अगस्त 2024 को राजर्षि दशरथ मेडिकल कॉलेज के संविदा लिपिक प्रभुनाथ मिश्रा ने संदिग्ध परिस्थितियों में जहर खा लिया था। गंभीर हालत में प्रभुनाथ को लखनऊ केजीएमयू रेफर किया गया था। केजीएमयू में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।पीएम में मौत का कारण स्पष्ट न होने पर बिसरा सुरक्षित किया गया और विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजा गया।

*उत्पीड़न के आरोप और डीएनए जांच में विसंगति*

परिजनों ने तत्कालीन प्राचार्य डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार पर प्रभुनाथ मिश्रा का उत्पीड़न करने और आत्महत्या के लिए बाध्य करने का आरोप लगाया।स्टेट मेडिकोलीगल एक्सपर्ट डॉ. जी खान ने रिपोर्ट में जहर से दम घुटन होने की आशंका जताई। परिजनों की मांग पर बिसरा में संरक्षित अंगों के टुकड़ों के डीएनए का मिलान प्रभुनाथ की मां सरस्वती देवी और पिता जगदीश मिश्रा के डीएनए से कराया गया। 27 मार्च को सीडीएफडी हैदराबाद की रिपोर्ट जारी हुई,जो 12 अप्रैल को परिजनों को मिली।रिपोर्ट के अनुसार बिसरा सैंपल का डीएनए माता-पिता से मेल नहीं खाया, जिससे बिसरा बदलने की आशंका उत्पन्न हुई।

*प्रशासनिक लापरवाही और सीएम की नाराजगी*

इस चौंकाने वाले खुलासे के बाद उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने मामले की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए।जांच में लापरवाही और साक्ष्य से छेड़छाड़ की पुष्टि होने पर अयोध्या डीएम चंद्र विजय सिंह को पद से हटा दिया गया।प्रभुनाथ मिश्रा की आत्महत्या के मामले में पहले ही राजर्षि दशरथ मंडलीय चिकित्सालय के प्राचार्य, दो डॉक्टरों और 12 अज्ञात लोगों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने और जान से मारने की धमकी देने के आरोप में रिपोर्ट दर्ज की जा चुकी है।

*न्याय की नींव पर सवाल*

यह मामला न केवल एक संविदा कर्मी की मौत का है, बल्कि यह न्याय प्रणाली में विश्वास की नींव को हिला देने वाला है। जब साक्ष्य से छेड़छाड़ होती है और जिम्मेदार अधिकारी लापरवाही बरतते हैं तो आम जनता का सिस्टम पर से भरोसा उठ जाता है।अब देखना यह है कि इस मामले में दोषियों को कब और कैसे सजा मिलती है और क्या प्रभुनाथ मिश्रा के परिवार को न्याय मिल पाएगा।

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