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प्रतिबंधित वृक्षों पर चलती आरी सूचना देने के बाद भी नही होती कार्रवाई*

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जब सईयां भए कोतवाल अब डर काहे का

_कंपिल फर्रुखाबाद से मंडल ब्यूरो ललित राजपूत की रिपोर्ट_

शासन द्वारा नियम कानून तो बना दिये जाते हैं लेकिन उनका पालन नहीं होता
सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण नियम व वृक्ष संरक्षण नियम तो बना दिए जाते है लेकिन उनको अमल में लाने की ठोस व्यवस्था नही की जाती तभी तो नियम और कानून कागजों में ही सिमट कर रह जाते हैं। वन संरक्षण अधिनियम को लागू हुये वर्षो बीत गये लेकिन आज तक उसका पूरी तरह पालन नहीं हो पा रहा है।

उत्तर प्रदेश वृक्ष संरक्षण अधिनियम के तहत वृक्षों को काटने के लिये तीन श्रेणियां बनायी गयी। प्रतिबंधित श्रेणी के वृक्षों को सरकारी विकास कार्यो में बाधा की स्थिति में सूखने या रोगग्रस्त होने या फिर जान-माल में बाधक होने पर ही काटा जा सकता है। लेकिन वृक्ष संरक्षण अधिनियम के सारे प्रावधान विभिन्न कारणों से पूरी तरह अप्रभावी हो रहे हैं।प्रतिबंधित श्रेणी के 29प्रजातियों के वृक्षों में आम, नीम, महुआ, पीपल और बरगद आदि के पेड़ शामिल हैं। अपवाद को छोड़कर इनके हरे वृक्ष काटे जाने पर पाबंदी है। उस प्रतिबंधित श्रेणी के वृक्षों में शीशम, कटहल सहित 29 तरह के पेड़ शामिल हैं। तीसरी श्रेणी के वृक्षों को काटने पर छूट है। इनमें बबूल, यूकेलिप्टस, पापुलर, बेवर, के पेड़ों की गिनती है। परंतु प्रत्येक काटे गये वृक्ष के स्थान पर वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 में उल्लेखनीय है प्रावधानों के अनुसार दो वृक्षों को रोपित करने व उनकी देखरेख के लिये वृक्ष काटने की अनुमति लेने वाला व्यक्ति ही बाध्य होगा। लकड़ी व अन्य वन उपज नियमावली 1978 के प्रावधानों के अंतर्गत सक्षम अधिकारी से अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य है। नियमों का उल्लंघन करने वालों के विरूद्ध कठोर कार्रवाई की व्यवस्था है

लेकिन कायमगंज ब्लाक क्षेत्र में इन नियमों का पालन नहीं हो रहा है। वृक्ष काटने की परमिशन वन विभाग के द्वारा दी जाती है ।लेकिन वन विभाग ही मूक दर्शक की भूमिका निभा रहा है ।फिर कार्यवाही कौन करे।किसी ने कहावत सही कही की “सैया भैय कोतवाल अब डर कहको ” की कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही है।वन विभाग लकड़ी माफियों के मेल जोल से खूब कटान हो रहा है। विन विभाग लकड़ी माफियों पर कार्यवाही करने में असहज महसूस कर है

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